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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 7  
समीक्षकी विचारधारायें

1. नयी समीक्षा

प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।

उत्तर -

नयी समीक्षा - पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र में जिस आलोचनात्मक प्रवृत्ति का नाम नई समीक्षा पड़ा है, उसका प्रयोग अमरीका में सबसे पहले 'नैशविल' से प्रकाशित द फ्यूजिटिव (1622-25) के लेखकों की रचनाओं में हुआ था, और उसके नेता जॉन क्रो रैसम को नई समीक्षा के नेतृत्व का श्रेय मिला। नयी समीक्षा (न्यू क्रिटिसिज्म) शब्द भी रैंसम की पुस्तक 'द न्यू क्रिटिसिज्म' (1641) में आया है और आज भी यह शब्द आलोचनात्मक विचार श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी बन गया है।

नयी समीक्षा ऐतिहासिक आलोचना के प्रति प्रतिक्रिया के फलस्वरूप अस्तित्व में आई। इसमे इलिएट एवं रिचर्ड्स का योगदान प्रमुख रहा है, क्योंकि उन्होंने एक ऐसी आधारभूमि विकसित की जिर पर नये समीक्षकों ने मूलपाठ के सूक्ष्म भाषिक अध्ययन की विधि का निर्माण किया है। इलियट और रिचर्ड्स को प्रेरणा श्रोत के रूप में ग्रहण कर आलोचना की पाठकीय समीक्षा पद्धति को उसके चरम पर पहुँचा दिया। बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में इस नई समीक्षा को इसके प्रमुख आलोचकों रैंसम, एलन टेट, ब्लैकमूर, रावर्ट पेन वारेन, क्लींथ ब्रुक्स तथा एम्वसन के कार्य विशेष महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

नयी समीक्षा के समय प्रचलित आलोचनात्मक प्रणालियों में मानवतावादी और मार्क्सवादी विचारकों के विचारों में यद्यपि मतभेद था, पर उनके दृष्टिकोण में समानता थी। मानवतावादी विचारकों ने साहित्य में रुचि ली, तो उसके नैतिक, धार्मिक, सामाजिक उपयोग पक्ष की ओर आकृष्ट होने के कारण। उधर मार्क्सवादी विचारकों ने उसे प्रचार साधन अथवा समाजशास्त्रीय दृष्टि से मात्र देखने का प्रयास किया। परम्परागत शास्त्रीय आलोचना में कृति के बजाय कृतिकार पर अधिक जोर देकर इस स्थिति को और भी जटिल बनाया गया। ऐसे में, इस तरह के आलोचनात्मक आन्दोलन की आवश्यकता थी, जो मार्क्सवाद, मानववाद और शास्त्रीय समीक्षा प्रणाली के बंधन को स्वतन्त्रता दिला सके। क्लींथ ब्रुक्स ने 'द वेल रॉटअर्न' में इसी भावना के अनुरूप साहित्य के सामान्य सिद्धांतों में ढूँढ़ने का प्रयत्न किया, जिसको उसने संक्षेप में इस प्रकार रखा है-

(1) कविता अपनी रचना के युग की भावना ( अथवा संवेदनशीलता) के आधर की अभिव्यक्ति करती है।

(2) अतीत के आलोचक काव्य को आत्मनिष्ठता की कसौटी पर कसने के लिए उतने ही योगय थे, जितने हम।

(3) काव्य वही है, जिसे किसी भी समय, किसी भी स्थान पर प्रतिष्ठित निर्णायकों ने काव्य की संज्ञा दी हो।

(4) किसी भी युग की कविता कभी गलत रास्ते पर नहीं जाती। हो सकता है कि संस्कृति गलत राह पर चल दे, सभ्यता का विपथन हो जाय, आलोचना दिशा भ्रष्ट हो जाय, परन्तु समष्टिगत अर्थ में कविता कभी गलत राह पर नहीं जा सकती।

(5) अतः हर कविता को उसकी वैयक्तिक संवेदनशीलता के आलोक में परखा जाना चाहिए, जो उसकी उत्कृष्टा एवं विकृष्टता की कसौटी भी होती है।

नयी समीक्षा के विचारकों का मानना था कि जब हम किसी कलाकृति की समीक्षा करके उस पर कोई निर्णय लेते हैं, तो उस निर्णय में हमारी समस्त ऐतिहासिकता की भावना और मानव की नियति समाहित रहती है। संवेदना पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती रहती है, किन्तु अभिव्यक्ति को कोई प्रभावशाली ही बदल सकता है। इनका मानना था कि किसी भी राष्ट्र में भाषिक क्रान्ति से अधिक महत्वपूर्ण और कुछ नहीं होता है। रैंसम ने कलाकृति में शब्द-विधान और उसके अर्थ-विधान की चर्चा करते हुए लिखा है कि: अर्थ विधान शास्त्र की भाषा की चीज है और शब्द विधान काव्य के भाषा की। एलेन टेट ने काव्य में वाच्यार्थ और लक्षार्थ के बीच सामंजस्यपूर्ण प्रतिमानों की चर्चा की।

इलियट ने नयी समीक्षा की नीति रखते हुए 1621 में ही लिखा कि आलोचना की ईमानदारी इसी में है, कि वह कवि की ओर नहीं, कविता की ओर उन्मुख हो और तभी संवेदनापूर्ण रसास्वादन संभव है। नये समीक्षक भी कहते हैं कि कवि हमें कविता ही देता है, कुछ और नहीं और कविता से बाहर की किसी भी वस्तु पर विचार करना गलत है, जो उस कविता को आलोकित करने में सहायक न हो, अर्थात् इसका अर्थ यह है कि हम किसी कलाकृति की ओर सौन्दर्यानुभूति के नाते आकृष्ट होते हैं- जैसे हम नाटक देखने अथवा संगीत सुनने के लिए रंगशाला में जाते हैं, कलाकारों की जीवनी के लिए सामग्री एकत्र करने अथवा किसी समाज अथवा किसी सभ्यता के उत्थान - पतन के इतिहास का अध्ययन करने हीं जाते, हालांकि यह सच है कि ये सब प्रसंगतः उसमें से उभरकर सामने आती है। स्वीगार्न ने भी बाद नयी समीक्षा (1670) लीविस की बात का समर्थन किया कि समाजशास्त्री को भी किसी कलाकृति में तभी कुछ अधिक मिल सकता है जब कि वह काव्य में से आँकड़े न छाँटे बल्कि उसे एक साहित्यिक लोचक की नजर से देखे।

नयी समीक्षा के आलोचकों ने काव्य की अद्वितीयता को उभारने का अपना निजी तरीका निकाला है। रिचर्ड्स ने भावात्मक और निर्देशात्मक अर्थ का, एम्पसन ने अनेकार्थता का, रैंसम ने शब्द विध न और अर्थ विधान का, क्लींथ ब्रुक्स ने विरोधाभास का, वारेन ने वक्रोक्ति का, इलिएट ने मूर्त विधान का, और ब्लैकमर ने भंगिमा का। इस प्रकार प्रत्येक आलोचक का अपना एक मूलमंत्र है, जिसके अनुसार वह समीक्षा कार्य को करता है।

रैंसम कविता के मूल्यांकन के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि आलोचक को चाहिए कि वह कविता को किसी दुःसाध्य प्रमेयवादी या तत्वमीमांसीय कौशल से किसी प्रकार कम न समझें। आलोचक को एक ऐसे प्रमेयवाद का एक ऐसी सत्ता का विश्लेषण करना पड़ता है, जिसका विश्लेषण विज्ञान द्वारा सर्वथा असंभव है। कवि अपनी कविता में उस सत्ता को हमारे सम्मुख वस्तुगत परिपूर्णता को प्रस्तुत करता है। ताकि हमें वास्तविक मूल्यों का बोध हो सके। एकमात्र कला को ही ऐसी शक्ति से संकलित माना गया है, जो हमारे समक्ष गुणात्मक घनत्व या मूल्यगत घनत्व प्रस्तुत करती है। वह आगे कहता है कि यह विश्व परस्पर विरोधी सम्बन्धों और अन्तर्व्याप्ति से पूर्णतः आपूरित है। कविता काव्यभाषा की सघनता या व्यंजकता के द्वारा उसका चित्रण करती है। सघनता और वैशिष्ट्य का संबंध कविता के शब्द-विधान से है। अतः नयी समीक्षा काव्यभाषा और प्रतीकवाद का व्यापक अध्ययन प्रस्तुत करने का यास करती है। नयी समीक्षा की मूल समस्या यह देखना है कि किसी साहित्यिक रचना में भाषा किस प्रकार क्रियाशील होती है। उपर्युक्त विश्लेषण के साथ नयी समीक्षा की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार रखी जा सकती हैं-

(1) नये समीक्षकों के लिए कृति या रचना सबसे महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार रचनाकार का जीवन और परिवेश, रचना के प्रेरणास्रोत रचना प्रक्रिया, रचनाकार की मानसिकता, उसका ऐतिहासिक पक्ष, उसमें निहत दर्शन, समाज, संस्कृति, नीति तथा उपयोगिता आदि सभी बातें 'नयी समीक्षा' के विचार क्षेत्र के बाहर की वस्तुएँ हैं। उसका रचना की समीक्ष या मूल्यांकन से कोई संबंध नहीं होता है। अतः नयी समी के समीक्षकों के लिए विचारणीय तथ्य केवल कृति है।

(2) किसी भी कृति के साक्षात्कार के समय सबसे पहले उसका भाषायी स्वरूप सामने आता है। इसीलिए नयी समीक्षा भाषा को केन्द्र में रखकर कृति को देखने का प्रयास करती है। उनकी दृष्टि में कविता वस्तुतः भाषा की संरचना होती है, जिसका अभिप्राय प्रकारान्तर से वस्तु की अन्विति से होता है। अतः कृति के विश्लेषण के लिए कृति की भाषा का विश्लेषण आवश्यक है। अतः नये समीक्षकों के अधिकांश समीक्षामान भाषा पर ही केन्द्रित है। यथा-टेक्श्चर, स्ट्रक्चर, अनेकार्थता, पैराडाक्स आदि।

(3) नयी समीक्षा कलाकृति को अखण्डता में देखने पर बल देती है, अर्थात् उसके विचार से कविता के रूप में तत्व और वस्तु तत्व को अलग-अलग करके समीक्षकों को नहीं देखना चाहिए अपितु उसका विश्लेषण एक समन्वित इकाई के रूप में होना चाहिए।

(4) नयी समीक्षा ने सिखाया कि कविता कैसे पढ़ी जानी चाहिए, यह अनुभव कराया कि साहित्य का अपना एक औचित्व है जो भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त होता है और कविता को कविता के रूप में पढ़ा जाना चाहिए, किसी और रूप में नहीं।

(5) शुद्ध साहित्य के अतिरिक्त दूसरे विषयों के ज्ञान की आवश्यकता को सिद्ध करके आलोचना के आयामों को विस्तार दिया है।

(6) छंद, कल्पना और अलंकार ग्रहणशीलता या संवेदना के घनत्व की अभिवृद्धि करते हैं। पहले दो तत्व इस उद्देश्य की प्राप्ति काव्यवस्तु को एक प्रकार का संयम देकर करते हैं और अंतिम (अलंकार) ज्ञानात्मक अवधान को आकृष्ट करके और संवेदनाओं पर विज्ञान के प्रभाव को क्षीण बनाकर करते हैं।

(7) प्रतीक, बिम्ब काव्य के निर्माण में ये जितने सहायक हैं, उतने उनके विश्लेषण में भी

इस प्रकार नयी समीक्षा रचना या कविता को शुद्ध रूप में देखने की पक्षपाती है। यह इसके स्वतन्त्र अस्तित्व की स्थापना करती है तथा निरपेक्ष एवं रचनात्मक अध्ययन पर बल देती है। इस समीक्षा प्रणाली में काव्य-भाषा को अत्यधिक महत्व दिया गया है। भाषागत तथा कृति की गहराई से शब्द, गति, लय और उसकी भंगिमा एवं उनकी स्थिति के सौन्दर्य का अनुशीलन ही उसका लक्ष्य है। वास्तविक रचना सौष्ठव इसी पद्धति के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। वस्तुतः नयी समीक्षा एक दृष्टिकोण ही है, कोई नवीन पद्धति या सिद्धांत नहीं।

पाश्चात्य समीक्षक प्रीचर्ड ने 'क्रिटिसिज्म इन अमेरिका' में नयी समीक्षा के योगदान को इस प्रकार रखा है। नयी समीक्षकों के अधिकांश योगदान का निश्चयात्मक मूल्यांकन तो कुछ समय बाद ही सकेगा। परंतु यह स्पष्ट है कि भाषिक अभिव्यंजना पर जोर देने से कविता के अध्ययन को लाभ पहुँचा। काव्याध्ययन को नयी दिशा देकर काव्य-समस्याओं के प्रचार द्वारा उन्होंने काव्य पाठकों की संख्या में अभिवृद्धि की है। विगत वर्षों में नये समीक्षकों के आत्मपर्यालोचन से और इस प्रकार के संकेतों से दिवे अपने अध्ययन को व्यापक बनाने के लिए अधिकाधिक तैयार हैं। इस प्रकार का अर्थ उनका और स है, या एक विचारधारा के रूप में उनका तिरोभाव यह बात अभी कोई नहीं कह सकता, किन्तु यह सच है. कि आलोचना की ऐसी महत्वपूर्ण विचारधारा इस शती में अभी कोई और नहीं जन्मी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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